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भारत के स्वतंत्रता से पहले के महत्वपूर्ण अधिनियम

भारत के स्वतंत्रता से पहले के महत्वपूर्ण अधिनियम: प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से 1947 से पहले बने हुए अधिनियम को याद रखना काफी अहम होता है. सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में आधुनिक भारत के इतिहास से सम्बंधित अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं जिनसे भारत के स्वतंत्रता से पहले के महत्वपूर्ण अधिनियम के बारे में अधिक प्रश्न बनते हैं.

इन्ही को ध्यान में रखते हुए भारत के स्वतंत्रता से पहले पारित हो चुके महत्वपूर्ण अधिनियम की सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दिया गया है.

विषय सूची

अंग्रेजों का भारत आगमन व शासन करने की उनकी मनोस्थिति

पंद्रहवीं सदी के अंत तक भारत में अंग्रेजों का किसी भी प्रकार का आधिपत्य नहीं था, इस दौरान वे अपने देशों में और इंडोनेशिया में मसाले और कपड़े का व्यापार संचालित करते थे.

सोलहवीं सदी के शुरुआत में इंग्लैंड के कारखानों में बने कपड़े को बेचने व कच्चा माल के लिए अंग्रेजों को व्यापार क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई. इसी उद्देश्य से सन 1599 में एक अंग्रेज व्यापार करने भारत आया, इसके पश्चात् कई अंग्रेजों का भारत आगमन हुआ.

31 दिसम्बर सन 1600 में अंग्रेजों ने भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना किये, ध्यातव्य है कि ईस्ट इंडिया कंपनी कोई कारखाना या फैक्ट्री नहीं था, बल्कि यह अंग्रेजों का राजनीतिक संस्थान था.

सन 1609 में कैप्टन विलियम हॉकिंस ने सूरत में कारखाना खोलने के लिए तत्कालीन मुगल बादशाह जहाँगीर के दरबार में अर्जी लेकर आया चूँकि उनकी अर्जी स्वीकार नहीं की गयी.

जहाँगीर के समक्ष हॉकिंस की अर्जी ख़ारिज होने के बावजूद अंग्रेजों ने किसी प्रकार से सूरत में कारखाने खोल लिए लेकिन सन 1913 में जहाँगीर ने सूरत में स्थाई कारखाना संचालित करने की अनुमति दे दी.

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना से अंग्रेजों का बढ़ा वर्चस्व

सूरत में स्थाई कारखाना की शुरुआत के साथ ही अंग्रेजों का आधिपत्य बढ़ने लगा और ईस्ट इंडिया कंपनी का लगातार विस्तार होने लगा था. व्यापार के बढ़ते स्थिति को देखते हुए अंग्रेजों के मन में शासन करने की इच्छा हुई,

इसी का परिणाम यह हुआ कि सन 1757 ईसवीं में प्लासी का युद्ध व 1764 ईसवीं में बक्सर का युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगल शासक / नवाबों के बीच लड़ा गया.

प्लासी व बक्सर युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की विजय हुई और इसी विजय ने अंग्रेजों को भारत में शासन करने के द्वार खोल दिए क्योंकि युद्ध में हार की वजह से मुगल शासकों को अपने साम्राज्य का कुछ हिस्सा अंग्रेजों को सौंपने पड़े थे.

चूँकि अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक व नई तकनीक के हथियार थे जबकि विपक्ष के पास इसकी कमी थी. इसी का फायदा उठाते हुए अंग्रेज तत्कालीन शासकों से युद्ध करते व जीतकर उनसे राज्य छीन लेते अथवा उनके बदले कीमती पद अथवा मांग करते.

ऐसे ही भारत के अनेक क्षेत्रों में अंग्रेजी शासन स्थापित हो गए व शासन करने के लिए अनेक नियम-कानून व अधिनियम बनाये.

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भारत के स्वतंत्रता से पहले के महत्वपूर्ण अधिनियम

1773 ईसवीं का रेग्युलेटिंग एक्ट

भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित ईस्ट इंडिया कंपनी को नियंत्रण करने व उनकी राजनैतिक शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से 1773 ईसवीं का रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया गया ताकि कंपनी पर इंग्लैंड की संसद इसे अपने नियंत्रण में कर सके.

इस एक्ट के द्वारा कंपनी को प्रशासनिक तथा राजनैतिक अधिकार दिए गए तथा केन्द्रीय प्रशासन अर्थात सर्वोच्च सत्ता केन्द्रित समिति का आधार स्तम्भ रखा गया.

1773 ईसवीं का रेग्युलेटिंग एक्ट की विशेषताएं

  • इस एक्ट के माध्यम से कलकत्ता प्रेसीडेंसी में गवर्नर जनरल और उसके चार सदस्यीय परिषद् वाली सरकार की स्थापना की गयी, जिन्हें संयुक्त रूप से सत्ता का उपयोग करना था.
  • इस एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर के पद का नाम परिवर्तन कर गवर्नर जनरल किया गया और बम्बई तथा मद्रास को इसके अधीन रखा गया.
  • 1773 ईसवीं का रेग्युलेटिंग एक्ट / अधिनियम के माध्यम से सन 1774 में कलकत्ता में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी. उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अलावा तीन अन्य न्यायधीश थे, जिसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे थे.
  • इस एक्ट के तहत निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को व्यापार करना और भारतीयों से उपहार व रिश्वत लेना मनाही कर दिया.

सेटलमेंट एक्ट 1781 ईसवीं

सेटलमेंट एक्ट 1781 के माध्यम से 1773 ईसवीं का रेग्युलेटिंग एक्ट में छोटी-सी परिवर्तन कर एक प्रावधान जोड़ा गया, जोकि कलकत्ता के शासक को बिहार, बंगाल और उड़ीसा क्षेत्र के लिए कानून बनाने का अधिकार देना था.

पिट्स इंडिया एक्ट 1784 ईसवीं

पिट्स इंडिया एक्ट 1784 के माध्यम से प्रशासन को दो भागों में बाँट दिया गया,

  • बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर (नियंत्रण बोर्ड) – राजनैतिक मामलों की जिम्मेदारी
  • बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स (निदेशक बोर्ड) – व्यापारिक मामलों की जिम्मेदारी

चार्टर अधिनियम 1793 ईसवीं

इस चार्टर अधिनियम 1793 के बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर (नियंत्रण बोर्ड) के सदस्यों और कर्मचारियों का वेतन भारतीय राजस्व से देने का प्रावधान था.

चार्टर अधिनियम 1813 ईसवीं

  • ईस्ट इंडिया के अधिकार सम्बन्धी ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी राजपत्र की मान्यता अवधि बीस वर्ष तक के लिए बढ़ा दी गयी.
  • कंपनी का भारत के साथ एकाधिकार व्यापार को समाप्त किया गया परन्तु चीन और पूर्वी देशों के व्यापार अधिकार को बीस वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया.
  • ब्रिटिश नागरिकों को भारत में व्यापार करने की छुट दी गयी लेकिन इसके लिए शर्ते लागू थी.
  • चार्टर अधिनियम 1813 के माध्यम से इसाई पादरियों को भारत आने की अनुमति मिल गयी, ज्ञात हो कि 1813 से पहले इसाई पादरी भारत नहीं आ सकते थे.

चार्टर अधिनियम 1833 ईसवीं

  • ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार सम्बंधित सभी अधिकार छीन लिए गए.
  • बंगाल के गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल कहलाया.
  • बम्बई और मद्रास परिषद् के कानून बनाने की पॉवर को छीन लिए गए.
  • विधिक सलाह के लिए गवर्नर जनरल के परिषद् में एक अन्य सदस्य विधि सदस्य जोड़ा गया, जो कानून का जानकार होगा.
  • भारत में दास प्रथा को गैर-कानूनी करार दिया गया व 1843 में दास प्रथा को जड़ सहित खत्म कर दिया गया.
  • भारतीय कानूनों का सही तरीके से ढांचा तैयार करने व उसका वर्गीकरण करने के लिए विधि आयोग के गठन की बात कही गयी.
  • कंपनी के कर्मचारी नियुक्त होने के लिए जाति, धर्म, रंग भेद समाप्त कर दिए गए.

चार्टर अधिनियम 1853 ईसवीं

  • चार्टर अधिनियम 1853 के द्वारा शासकीय सेवाओं में कर्मचारी भर्ती के लिए नामित करने की जगह प्रतियोगी परीक्षाओं से पद भरने का प्रावधान रखा गया. इसकी देखरेख के लिए 1854 में मैकाले समिति का गठन किया गया.
  • गवर्नर जनरल की विधि सम्बन्धी और प्रशासनिक सम्बन्धी कर्तव्यों को निथार दिया गया व छः नए सदस्यों जोकि पार्षद होते थे, विधान पार्षद के रूप में जोड़ा गया.

भारत शासन अधिनियम 1858 ईसवीं

  • भारतीय सत्ता का प्रशासनिक अधिकार कंपनी से छीन कर ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरण कर दिया गया.
  • भारत शासन अधिनियम 1858 के अंतर्गत भारत देश में मंत्री पद का सृजन किया गया.
  • भारतीय परिषद् का गठन किया गया जिसमें पद्रह सदस्य हो सकते थे.
  • भारत के किसी भी मामलों पर ब्रिटिश संसद की प्रत्यक्ष नियंत्रण व भूमिका स्थापित की गयी.
  • मुगल सम्राट के पद का अंत किया गया.
  • भारत शासन अधिनियम 1858 के माध्यम से बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर (नियंत्रक बोर्ड) तथा बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स (निदेशक बोर्ड) को समाप्त किया गया.
  • भारतीय शासन के प्रचालन में ब्रिटिश मंत्रिमंडल में एक सदस्य जोड़ा गया जो भारत के राज्य सचिव के पद पर होगा.
  • भारत शासन अधिनियम 1858 के माध्यम से भारत का गवर्नर जनरल का नाम बदलकर वायसराय नाम दिया गया. लार्ड कैनिंग प्रथम वायसराय व अंतिम गवर्नर जनरल हुए.

भारत परिषद् अधिनियम 1861 ईसवीं

  • गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार
  • सरकार के कार्यकारिणी को प्रत्येक इकाई / विभागों में बाँटा गया. यहीं से विभागीय प्रणाली की शुरुआत हुई.
  • वायसराय को अध्यादेश लाने की शक्ति दी गयी, अध्यादेश की अधिकतम अवधि छः माह की होती थी.
  • वायसराय को यह शक्ति दी गयी कि वह बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त और पंजाब में विधान परिषद् का गठन कर सके.
  • भारत परिषद् अधिनियम 1861 के माध्यम से विधि निर्माण प्रक्रिया में भारतीयों की सहभागिता सुनिश्चित की गयी.

1873 ईसवीं के अधिनियम ईसवीं

1873 ईसवीं के अधिनियम के माध्यम से ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया गया चूँकि इसे ग्यारह वर्ष बाद यानि 1884 में भंग किया गया हालाँकि इसके भंग करने की पूर्वसूचना 1873 में जारी कर दी गयी थी.

शाही उपाधि अधिनियम 1876 ईसवीं

  • शाही उपाधि अधिनियम 1876 के अंतर्गत इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी का औपचारिक घोषणा की गयी.
  • इस अधिनियम द्वारा वायसराय को केन्द्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाकर उसे लोक निमार्ण विभाग का जिम्मेदारी सौंपा गया.

भारत परिषद् अधिनियम 1892 ईसवीं

  • भारत परिषद् अधिनियम 1892 द्वारा कार्यकारिणी से बजट, राजस्व आय-व्यय सम्बन्धी प्रश्न पूछने की व्यवस्था की गयी.
  • अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरूआत भारत परिषद् अधिनियम 1892 के द्वारा हुई.

भारत परिषद् अधिनियम 1909 ईसवीं

  • भारत परिषद् अधिनियम 1909 को मार्ले-मिन्टो सुधार अधिनियम भी कहा जाता है.
  • इस अधिनियम के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के लिए अलग से निर्वाचक प्रणाली की व्यवस्था की गयी, इसके अंतर्गत मुस्लिम मतदाता ही मुस्लिम उम्मीदवार को चुन सकती थी.
  • भारतीयों को भारत राज्य के सचिव व वायसराय के कार्यकारिणी में स्थान दी गयी.

भारत शासन अधिनियम 1919 ईसवीं

  • भारत शासन अधिनियम 1919 को मांटेग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम भी कहा जाता है.
  • राज्य परिषद् (सदस्यों की संख्या 60) व केन्द्रीय विधानसभा (सदस्यों की संख्या 144) के रूप में केंद्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था की गयी.
  • भारत सचिव को भारत में नियंत्रक महालेख परीक्षक की नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया.
  • भारत शासन अधिनियम 1919 के अंतर्गत लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया था.
  • वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् में तीन भारतीय सदस्य का होना अनिवार्य किया गया.
  • भारत शासन अधिनियम 1919 के माध्यम से महिलाओं को मतदान करने का अधिकार प्राप्त हुआ.

भारत शासन अधिनियम 1935 ईसवीं

  • इस अधिनियम में 321 अनुच्छेद व 10 अनुसूचियां थीं.
  • भारत शासन अधिनियम 1935 के अंतर्गत अखिल भारतीय संघ की स्थापना करना मुख्य उद्देश्य था. अखिल भारतीय संघ में शामिल होने के लिए देशी रियासतों को ऐच्छिक छुट थी परन्तु प्रान्तों को अनिवार्य था.
  • इस अधिनियम का दूसरा प्रमुख उद्देश्य प्रांतीय स्वायत्ता स्थापित करना था, जिसमें द्वैत शासन व्यवस्था को खत्म कर स्वतंत्र संविधानिक अधिकार देना था.
  • इसमें संघीय न्यायालय की व्यवस्था का प्रावधान था, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश के अलावा दो अन्य न्यायाधीश होते थे हालाँकि इन न्यायालयों के अंतिम फैसलों पर मुहर लगाने का अधिकार प्रिवी काउंसिल लन्दन को प्राप्त था.
  • भारत शासन अधिनियम 1935 में ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता की बात कही गयी है, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश संसद सर्वोच्च रहेगा और केन्द्रीय विधानसभा अथवा राज्य परिषद् इस अधिनियम में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे.
  • इस अधिनयम के अंतर्गत भारत परिषद् को समाप्त कर दिया गया.
  • इसके अंतर्गत बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया.
  • भारत शासन अधिनियम 1935 के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गयी.
  • मताधिकार को विस्तृत रूप प्रदान कर दस प्रतिशत जनता को मताधिकार दिया गया.

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ईसवीं

  • 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 का प्रस्ताव रखा तथा 18 जुलाई 1947 को पारित हो गया.
  • भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में बीस (20) धाराएँ थी.
  • इसके अंतर्गत दो राज्यों भारत और पाकिस्तान बनाया जाना था.
  • इसमें यह भी कहा गया था कि संविधान सभा तब तक विधानमंडल रहेगी जब तक कि संविधान का निर्माण पूर्ण नहीं हो जाता.
  • इसके माध्यम से प्रस्तावित था कि जब तक संविधान बनकर तैयार नहीं हो जाती तब तक भारत शासन अधिनियम 1935 लागू रहेंगे.
  • देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित होने की ऐच्छिक छूट प्राप्त रहेगी.
  • भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अंतर्गत भारत को असम के सिलहट जिले, पश्चिम-उत्तर सीमा प्रान्त, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान को छोड़कर शेष भारत के राज्यक्षेत्र मिल जायेगा.
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